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आत्मनिर्भर बनो/ Being self depend -:
एक बार एक कौआ होता है। उसे एक नदी मे हाथी का मरा हुआ शब मिलता है।
कौआ उस मरे हुए शब पर सवार हो जाता है।और सोचता है कि बिना मेहनत के ही उसे काफी महीनों के लिए भोजन मिल गया।
कौआ दिन रात उसी शब का निवाला बनाता रहता है। ऐसे करते हुए उसे कई दिन बीत जाते है।
और नदी उस शब को अपने साथ बहाते - बहाते एक समुंदर के बीच पहुंचा देती है।
पर कौए को इससे कोई फर्क नही पड़ता। उसका ध्यान तो सिर्फ अपने पेट भरने में ही होता है।
धीरे - धीरे जब हाथी का पुरा शारीर खत्म होने लगता है।
तब तक बहुत देरी हो चुकी होती है। क्योंकि हाथी का पूरा शरीर एक तो खत्म होने पर हुआ होता है वहीं दुसरी ओर शरीर और कौआ दोनों समुंदर तट से काफ़ी दूर पहुंच गए होते हैं।
अंत में जब कौन डूबने की कगार में आ जाता है तो उस समय बो उड़ान भरता है।
उड़ान भरते भरते काफी समय हो जाता है पर फिर भी कौआ समुंदर किनारे तक पहुंच नही पता।
उड़ान भरते - भरते जब वह पुरी तरह थक जाता है। तो तट दूर होने के कारण, तट पर समय पर ना पहुंचने के कारण , बिवस्तता पूर्ण उसे अपने प्राण त्यागने पड़ते हैं।
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